बोलानी, 22/6 (शिबाशीष नंदा) — कभी ओडिशा का खनिज समृद्ध क्षेत्र कहे जाने वाला बड़बिल, आज प्रदूषण के ज़हर में घुट रहा है। खदानों की भरमार, चारों ओर धड़ल्ले से चल रहे छोटे-बड़े कारखाने और दिन-रात दौड़ते हजारों भारी वाहन — ये सब मिलकर इस शांत और हरियाली भरे इलाके को धीरे-धीरे एक ज़हरीले गैस चैंबर में बदल रहे हैं।
हर सांस अब डराती है। हर झोंका अब ज़हर बन चुका है।
पर्यावरण कार्यकर्ताओं की चेतावनी है — बड़बिल और इसके आसपास की वायु गुणवत्ता इतनी खराब हो चुकी है कि यहाँ की हवा में सांस लेना भी खतरनाक हो गया है। पीएम 10 जैसे घातक धूलकणों की मात्रा हर दिन बढ़ रही है।
कारखानों का मनमाना संचालन, खनिज कंपनियों का पर्यावरणीय नियमों की खुलेआम अनदेखी, और बिना रोकटोक के भारी ट्रकों की आवाजाही — इन सबने इस इलाके के आसमान को धुंए से काला, हवा को जहरीला और पानी को बदबूदार बना दिया है।
आज यहां बच्चे स्कूल में ध्यान नहीं लगा पाते, बुजुर्ग दिल की बीमारी से कराह रहे हैं, और घरों में पाले गए पशु तक बीमार हो रहे हैं। जंगलों में रहने वाले वन्यजीव, जिनका कोई दोष नहीं, वे भी इस जहरीले बदलाव के शिकार हो रहे हैं।
यह सिर्फ प्रदूषण नहीं, यह धीमा ज़हर है — जो हर दिन, हर सांस के साथ इस शहर को खा रहा है।
हजारों गाड़ियों की गड़गड़ाहट ने नींद छीन ली है। शांति अब यहाँ एक सपना बन गई है। पानी के प्राकृतिक स्रोत जहरीले हो चुके हैं, और पर्यावरण का संतुलन — जो सदियों में बना था, अब सालों में उजड़ रहा है।
पर्यावरण कार्यकर्ता रसानंद बेहरा कहते हैं — "अगर अब भी हम नहीं जागे, अगर संबंधित अधिकारी, उद्योगपति और सरकारें सिर्फ रिपोर्टों और कमेटियों में उलझी रहीं, तो बड़बिल का भविष्य केवल धूल, धुआं और मौत होगा।"
स्थानीय लोगों ने सरकार से गुहार लगाई, पर्यावरण मंत्रालय से शिकायत की, निरीक्षण दल आए, रिपोर्टें भी बनीं — लेकिन परिस्थिति जस की तस बनी हुई है। सुधार सिर्फ कागज़ों में है, ज़मीन पर नहीं।