बोलानी, 26/9 (स्वतंत्र प्रतिनिधि) – सीमांत व खनन क्षेत्र बोलानी में दुर्गा पूजा का महत्व हमेशा से ही खास रहा है। देश के अलग-अलग हिस्सों से आजीविका की तलाश में आए मजदूरों ने वर्ष 1962 में यहां दुर्गा पूजा की शुरुआत की थी। तब से लेकर आज तक अनेक उतार-चढ़ाव के बावजूद लगातार भव्यता के साथ यह पूजा आयोजित की जा रही है। पूजा समिति का नाम भले कई बार बदला हो, लेकिन श्रद्धालुओं की आस्था और उत्साह कभी नहीं बदले। इस वर्ष बोलानी दुर्गा पूजा अपने 63वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी है।
इस पूजा की एक खास पहचान हैं मूर्तिकार सुदर्शन कुंडु। पश्चिम बंगाल के बाँकुड़ा जिले के हाटकृष्ण नगर निवासी श्री कुंडु पिछले 30 वर्षों से लगातार बोलानी में प्रतिमाएँ बना रहे हैं। हर साल वे जुलाई माह में यहाँ पहुँचते हैं और सबसे पहले विघ्नहर्ता गणेश जी की प्रतिमा निर्माण में जुट जाते हैं।
सुदर्शन कुंडु न सिर्फ बोलानी, बल्कि बड़बिल और पडोशी राज्य झारखंड के कुछ क्षेत्रों में भी अपनी बनाई हुई प्रतिमाएँ क्लबों, समितियों और श्रद्धालुओं तक पहुँचाते हैं। विश्वकर्मा पूजा पर वे खदानों, कारखानों, उद्योग संस्थानों, चालकों के संगठन और गैराजों के लिए अलग-अलग शैली की प्रतिमाएँ बनाते हैं। इसके बाद वे दुर्गतिनाशिनी माँ दुर्गा की भव्य प्रतिमा सहित सहायक देवी-देवताओं और महिषासुर की प्रतिमा गढ़ने में लग जाते हैं।
बोलानी दुर्गा पूजा कमिटी, बालागोड़ा बस्ती, बड़बिल स्टेशन रोड में अपनी कला से भक्तों को मोहित करते आ रहें हैं । धन देवी लक्ष्मी पूजा के आगमन पर बोलानी बाजार स्थित गजलक्ष्मी पूजा पंडाल में उनकी कारीगरी हर साल देखने को मिलती है। बाद में काली पूजा के शुभ अवसर पर दुर्गा पूजा पंडाल पर वे माँ काली, भगवान शिव, डांकिणी और योगिनी जैसी प्रतिमाएँ भी रचते हैं।
दिसंबर माह में खान सुरक्षा सप्ताह के अवसर पर वे खदान सुरक्षा से जुड़ी मॉडल और माँ सरस्वती की प्रतिमाएँ बनाकर अपने गाँव लौटते हैं। इन छह महीनों के दौरान सूदर्शन कुंडु बलानी की मिट्टी से न सिर्फ सम्मान और स्नेह पाते हैं, बल्कि रोज़गार भी अर्जित करते हैं।
उनकी कला को कई बार विभिन्न संस्थानों द्वारा सम्मानित किया गया है। परंतु सुदर्शन कुंडु का कहना है कि असली सम्मान उन्हें बलानी की जनता से मिला स्नेह और आशीर्वाद ही है, जिसके लिए वे सदैव कृतज्ञ रहेंगे।